भीष्म पितामह ने अपना शरीर 58 दिन बाद क्यों त्याग किया? भीष्म पितामह से आप सभी अवश्य अवगत होंगे। भीष्म पितामह, वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत के प्रमुख पात्र है। महाभारत में वे एक कुशल योद्धा के रूप में गिने जाते है। भीष्म पितामह कुरु वंश के महाराजा शांतनु और माता गंगा के पुत्र थे । वे गंगापुत्र , भीष्म पितामह, देवदत्त आदि नामो से जाने जाते है। देवदत्त अपने पिछले जन्म में अष्ट वशु गण में प्रमुख थे। ऋषि वशिष्ठ के कुटिया से गौ चुराने के कारण उन्हें मृत्यु लोक में जन्म लेने का श्राप मिला। वे एक शूरवीर योद्धा, कुलश्रेष्ठ, ब्रह्मचारी और रण कौशल में श्रेष्ठ थे।उन्हें रण कौशल परशुराम जी ने सिखाया था। ब्रह्मा, गुरुवृहस्पति, शुक्राचार्य,इन्द्र आदि के द्वारा भी शिक्षा मिला।ओर वे इनके प्रमुख गुरु थे। देवदत्त अपने पिता के इच्छा को पूरा करने के लिए,आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा कर ली।ओर देेवदत(भीष्म पितामह) ने जीवन पर्यन्त हस्तिनापुर की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की थी।जिसके कारण उन्हें धृतराष्ट्र ओर अधर्म का साथ देना पड़ा।ओर वे कौरव पक्ष से युद्ध किए, उन्होंने युद्ध भूमि में भी भीषण प्रतिज्ञा की...
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