भगवत गीता श्लोक

        भागवत गीता श्लोक

कर्मण्यवादिकारस्ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगस्त्व कर्मणि।।


अनुवाद - श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा, 
   हे पार्थ ,तू केवल कर्तव्य कर्म कर, फल का आशा छोड़ दें। ओर तुझमें कर्म के प्रति आसक्ति भी नहीं  करनी चाहिए।
इससे तुम कर्म बंधन में नहीं लिप्त होगे।
*कर्म के बंधन में बंधने से मनुष्य को उस कर्म के प्रति आसक्ति हो जाती है। इसलिए हमे सदैव अपने कर्मो पर दृष्टि रखनी चाहिए।


Supreme lord Krishna tells to Arjuna ,you should do your action effortlessly, without thinking about results and entanglement.

* Always be careful about your action and keep eyes on it.


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