क्या भगवान् सच में है?या केवल कल्पनामात्र?
सभी हिन्दू धर्म ग्रंथ ,वेद , पुराण, उपनिषद्, आदि समस्त ग्रंथ भगवान् का ही गुणगान करते हैं।हमारे भारतीय सभ्यता में हिन्दू धर्म ग्रंथ की कोई कमी नहीं है। यही कारण रहा है कि हमारा देश विश्व गुरु रहा है।वेद चार है , उपनिषद् 108 है, पुराण 18 है। अगर इन सभी को आप पढ़े तो शायद पूरा जीवन लग जाए।
देखिए, भगवान् के प्रति आपको कोई भी जिज्ञासा हो, है कि नहीं। तो आपको भगवत गीता पढ़नी चाहिए।आपको कोई भी संदेह नहीं रहेगा ।
आज से करीब 5000 साल पहले भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ओर इग्यारहवे अध्याय में भगवान् अपने बारे में पूरे विस्तार से बताएं है।
भगवान् कहते है प्रकृति के कण कण में , मै हूं।यह समस्त सृष्टि मुझसे ही प्रकट हुआ है। मै ही इसका रक्षक हूं। प्रलय काल में मै ही इस सृष्टि का अंत भी करता हूं।
भगवान् श्री राम ने भी आदर्श ओर मर्यदापुरूषोतम के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किए है। और दुष्ट रावण का बध किया,एक कुशल प्राकर्मी योद्धा के रूप में।
कुरुक्षेत्र,रामसेतु, अयोध्या,ओर भी कितने प्रसिद्ध स्थलों पर पौराणिक प्रमाण मिले है,वो भी भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के द्वारा।
ऐसे ही अनगिनत प्रमाण आपको देखने व सुनने को मिल जाएंगे।वैसे हमने हरेक चीजों पर केवल विश्वास ही किया। चाहे वो विज्ञान हो या पौराणिक चीजे।
आपने भी जब जन्म लिया था ।तो आपको निश्चित रूप से अपने जन्मदाता के बारे में ज्ञान नहीं था।आपको किसी ने बताया व सिखाया और आपने विश्वास कर लिया।
देखिए, यह हमारा शरीर भी भोजन ओर विचारो का ही ढेर है।अगर इसमें प्राण ऊर्जा नहीं रहे ,तो इसे मृत घोषित कर दिया जाता है। तो इससे यह तो बिल्कुल सत्य है। हमने जो यह शरीर प्राप्त किया है यह परमात्मा का ही दिया हुआ है।इस शरीर में भगवान् चेतना (आत्मा) रूप में ही स्थित है। ओर हर समय अलार्मिंग घंटी के रूप में हमारा दिल धड़कते रहता है।जो काल का सूचक है।
इन सभी साक्ष्यों के आधार पर भगवान पर हमें पूर्ण विश्वास करना चाहिए।
राधे राधे।
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