भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का कैसे बध किया?

 भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का कैसे बध किया?

सबसे पहले में आपको इस प्रसंग के बारे में विस्तार से बताता हूं। 
  • ब्रह्मा जी ने जब चार कुमारो (सनकादी , सनत, सनातन,एवं सन्नदन)की रचना की , वेदों को समस्त लोक में फैलाने के लिए। वे चारों कुमार ब्रह्मा जी की आज्ञा से विष्णु भगवान् के पास गए ।
  • जब चारों ब्राह्मण बालक विष्णु लोक में प्रवेश कर रहे थे।तो भगवान् के द्वारपाल उन्हें जाने से रोक दिया। इससे क्रोधित होकर वे बालक श्राप दे दिया, तीन बार राक्षस योनि में जन्म लेने के लिए।
  • फिर विष्णु भगवान् आए,ओर सभी ब्राह्मण बालक को दर्शन दिए, मार्गदर्शन किया।उस द्वारपाल के क्षमा याचना करने के बाद,ब्राह्मण बालक ने उसकी मृत्यु भगवान् नारायण के हाथ से हो , आशीर्वाद दिया।
वहीं दोनों राक्षस हिरण्यकश्यप ओर हिरण्याक्ष के रूप  में प्रकट हुआ।


  • हिरण्यकश्यप अत्यंत भयानक, पराक्रमी व क्रूर राक्षस  था ।उसने खुद को भगवान मान लिया था।ओर अपने प्रजा को बहुत ही सताता था।ओर स्वयं की पूजा के लिए कहता था। वह भगवान् विष्णु से अत्यंत वैर भाव रखता था ।उसने समस्त लोको में अपना आधिपत्य जमा रखा था।उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर ब्रह्मा जी की तपस्या करने चला गया।एक बार जब देवताओं ओर राक्षसों में भयंकर युद्ध छिर गया था।
तब देवताओं ने कयाधु ,जो हिरणकश्यक की पत्नि थी।,को लेकर नारद जी को सौंप दिया।नारद जी ने उसे वेद,उपनिषद्,भगवत,सदाचार,भगवान की पूजा का ज्ञान दिया।
  • कुछ ही समय पश्चात उसे बहुत ही सुन्दर और दिव्य बालक का जन्म हुआ।वह दैत्यों में सबसे श्रेष्ठ भक्त था , भगवान् विष्णु का।
कुछ वर्षों के बाद उन्हें गुरुकुल में भेज दिया जाता है।
  • वहां पर वे भगवान् की भक्ति में ही लीन रहते है,ओर दूसरे बालक को भी प्रेरित करते थे भगवान की भक्ति  के लिए। भगवान् भी अपने भक्तों की सेवा कम नहीं करते थे ।समय - समय पर उनकी रक्षा और भोजन का ध्यान रखते थे।
गुरुकुल की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे घर लौटे।
वे निरंतर भगवान् नारायण का ही स्मरण किया करते थे।इससे क्रुद्ध होकर उसने कारागार में डाला,भयंकर खाई में गिराने का प्रयत्न किया, विष का पान करवाया, लेकिन इन सब में उसे असफलता ही हाथ लगी।भगवान नारायण ने प्रहलाद जैसे महान भक्त की हर जगह रक्षा की।होलिका भी प्रहलाद को अग्नि में भस्म करना चाहा लेकिन स्वयं भस्म हो गई।
कारण वरदान का गलत उपयोग की थी।
इधर हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर रसातल में रख दीया।भगवान् विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर,उस दुष्ट का अंत किया,ओर पृथ्वी को सही स्थान पर स्थित किए।
  • एक बार हिरण्यकशिपु स्वयं उसे आयुध से मारने के लिए तैयार था।उसने प्रहलाद से कहा, बुला लो अपने भगवान् को आकर तुझे बचाए।उसने उत्तर दिया,"भगवान् इस श्रृष्टि के कण - कण में व्याप्त है,वे इस खंभे में भी है।प्रहलाद को अपनी भक्ति पर पूर्ण विश्वास था। ज्योही दैत्य हिरण्यकश्यप अपने आयुध से उस खंभे पर प्रहार किया। भगवान् नारायण नरसिंह के रूप में प्रकट हो गए,उस क्रूर दुष्ट का अंत करने के लिए।
भगवान् काफी क्रोधित व विकराल दिख रहे थे। उन्होंने उस दैत्य को अपने जंघे पर रख लिए ओर बोले,"अब तुम्हारा अंत निकट आ गया है।
उस दुष्ट राक्षस ने कहा मुझे कोई नहीं मार सकता मै अमर हूं। मुझे ब्रह्मा जी ने वरदान दिया है की,
" में न अस्त्र से ओर न ही शस्त्र से,
न दिन में न रात में,
न घर के अंदर ,न बाहर।
न ही सुबह में,न शाम,
न धरती पर ,न आकाश में।
न मनुष्य ओर न नर से ही मारा जा सकता हूं।में अमर हूं।ऐसा उसने कहा।
भगवान् बोले," देख मूर्ख में पूरी तैयारी के साथ आया हूं"।
मै तुमको सारे शर्तें पूरी करते हुए मार रहा हूं।
में न मनुष्य न नर,में आधा नर ओर आधा पशु हूं।
न दिन में न रात में यह संध्या की बेला है।
न घर के अंदर,न घर के बाहर ,तुझे तेरी चौखट पे मार रहा हूं। 
न धरती पर न ही आकाश में ,तुम अभी मध्य में हो।
न अस्त्र से ओर न ही शस्त्र से,में तुम्हारा अंत अपने नाखूनों से करूंगा।
यह कहकर, महावीर,महापराक्रमी,भगवान् नरसिंह ने उसके हृदय विदिर्ण कर दिए।
वे महाविष्णु के अवतार है।
हम उन्हें नमस्कार करते है।
भगवान् ने महान भक्त प्रहलाद को वरदान व आशीष दिए।ओर अपने धाम चले गए।
जय नरसिंह देव ,जय प्रहलाद महराज।
*भगवान् नरसिंह मंत्र,
यह मंत्र समस्त नकारात्मक चिजो से रक्षा करती है।ओर संकटों से बचाती है।
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णु ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् नारसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्।।
* भगवान् नरसिंह के मधुर संगीत सुनें 
 Madhavas rock band. YouTube.


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